Mimi movie review : कमाल कर दिया कृति सेनन ने
Mimi movie review: कमाल कर दिया कृति सेनन ने
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20 साल पहले अब्बास मस्तान ने सलमान खान-रानी मुखर्जी-प्रीति जिंटा के साथ चोरी चोरी चुपके चुपके फ़िल्म बनाई थी और यह फ़िल्म सरोगेसी के कॉन्सेप्ट पर बेस्ड थी । और दिनेश विजान कि मैडॉक फ़िल्म्स और जियो स्टूडियोज एक बार फ़िर इसी विषय पर आधारित फ़िल्म लेकर आए हैं मिमी । मिमी में कृति सेनन और पंकज त्रिपाठी अहम भूमिका में नजर आए है । हालांकि यह फ़िल्म जुलाई को नेटफ़्लिक्स पर रिलीज होने वाली थी लेकिन ऑनलाइन लीक होने की वजह से फ़िल्म को 4 दिन पहले ही रिलीज कर दिया गया । तो क्या, मिमी दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब हो पाएगी, या यह अपने प्रयास में विफ़ल होती है ? आइए समीक्षा करते हैं ।
एक ऐसी लड़की की कहानी है जो सरोगेट मदर बनने का फैसला करती है । साल है 2013 है, मिमी मानसिंह राठौर (कृति सेनन) राजस्थान के एक छोटे से कस्बे में रहती हैं । वह एक अभिनेत्री बनने और मुंबई जाने का सपना देखती है । वह जॉली (नदीम खान) नामक एक व्यक्ति को जानती है, जो फिल्मों में काम करता है । वह उसे मुंबई जाने के लिए अपना पोर्टफ़ोलियो बनाने और उसके साथ एक म्यूजिक वीडियो शूट करने के लिए कहता है और इसके वह उससे कुछ लाख रु की मांग करता है । मिमी इतनी अमीर नहीं है, इसलिए वह इन पैसा जुगाड़ करने की कोशिश करती है । पैसा कमाने के लिए वह डांस शो करती हैं । ऐसे ही एक शो में, एक विदेशी जोड़ा समर (एवलिन एडवर्ड्स) और जॉन (एडन व्हाईटॉक) उसे देखने आते हैं । वे सरोगेट मदर की तलाश में एक साल से भारत में हैं क्योंकि समर गर्भधारण नहीं कर सकती । वे एक फिट और स्वस्थ लड़की की तलाश कर रहे हैं और जब वे मिमी को देखते हैं, तो उन्हें पता चलता है कि वह उनके बच्चे को जन्म देने के लिए परफ़ेक्ट है। वे अपने ड्राइवर भानु प्रताप (पंकज त्रिपाठी) को उसे समझाने के लिए कहते हैं । इसके बदले में, वे भानु को 5 लाख रु देने का वादा करते हैं । भानु तुरंत राजी हो जाता है । वह मिमी को समझाने में भी कामयाब होता है, खासकर जब उसे बताया जाता है कि इसके लिए मिमी को लाख रु मिलेंगे । मिमी सरोगेसी के लिए सहमत हो जाती है लेकिन उसे पता चलता है कि उसे अपने माता-पिता, मानसिंह राठौर (मनोज पाहवा) और शोभा (सुप्रिया पाठक) से अपनी गर्भावस्था को छिपाना होगा । इसलिए, वह उनसे झूठ बोलती है कि उसे एक फिल्म में एक भूमिका मिली है जिसके लिए उसे तुरंत मुंबई जाना है । वह अपनी सहेली शमा (साईं तम्हंकर) के घर चली जाती है । भानु भी उसके साथ चला जाता है और उसका पति होने का नाटक करता है । मिमी गर्भवती हो जाती है और सब ठीक चल रहा होता है । कुछ महीने बाद, समर और जॉन मिमी के गर्भ में पल रहे बच्चे का टेस्ट करवाते हैं जहां उन्हें पता चलता है कि मिमी के गर्भ में पल रहा बच्चा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होगा । समर और जॉन इससे टूट जाते हैं और फ़िर दोनों फ़ैसला करते हैं कि वह इस बच्चे को नहीं रखेंगे । वे भानु को कहते हैं कि मिमी को बताए कि उसे उस बच्चे का गर्भपात कर देना चाहिए । उससे मिले बिना, वे अपने देश, यूएसए के लिए रवाना हो जाते हैं । उनके आचरण के बारे में सुनकर मिमी टूट जाती है । कोई विकल्प न होने पर वह अपने घर लौट जाती है । उसके माता-पिता जाहिर तौर पर हैरान हैं । मिमी झूठ बोलती है कि भानु बच्चे का पिता है । मानसिंह और शोभा जाहिर तौर खुश नहीं हैं लेकिन वे इसे स्वीकार करते हैं । अंत में, 9 महीने बीत जाते हैं और मिमी एक लड़के को जन्म देती है । आगे क्या होता है यह बाकी की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।
लक्ष्मण उतेकर और रोशन शंकर की कहानी एक मराठी फिल्म MALA AAI VHHAYCHY 2011; समृद्धि पोरी द्वारा लिखित] से प्रेरित है । कथानक मनोरंजक और दिल को छू लेने वाली है और इसमें एक पारिवारिक मनोरंजन के सभी तत्व हैं । लक्ष्मण उतेकर और रोशन शंकर की पटकथा बेहद प्रभावशाली है । लेखक कथा को कुछ बहुत ही प्रभावशाली दृश्यों के साथ जोड़ते हैं जो रुचि को बनाए रखते हैं । साथ ही, फिल्म के अधिकांश हिस्सों में काफी हास्य है । इसलिए, यह सभी प्रकार के दर्शकों को आकर्षित करता है । रोशन शंकर के डायलॉग फ़िल्म की बेहतरीन चीजों में से एक हैं । डायलॉग्स मजाकिया हैं और बहुत अच्छी तरह से लिखे गए हैं और फिल्म के मनोरंजक बनाने में काफी हद तक योगदान देते हैं।
लक्ष्मण उतेकर का निर्देशन शानदार है । उनकी पिछली फ़िल्म लुका छुपी [2019] के निष्पादन में हालांकि कुछ कमियां रह गई थी । लेकिन मिमी में वह सब कुछ कंट्रोल में रखते हैं । फिल्म मातृत्व और सरोगेसी के इर्द-गिर्द घूमती है जो गंभीर विषय हैं । फिर भी, फ़िल्म में हास्य को बहुत मज़बूती से जोड़ा जाता है । इसी के साथ वह उन संवेदनशील मुद्दों का मज़ाक भी नहीं उड़ाते हैं जिन पर फ़िल्म टिकी है । सबसे बड़ी बात यह है कि वह इतनी सफ़ाई से फ़िल्म को फ़नी से सीरियस, और सीरियस से फ़नी बनाते हैं, यह वाकई काबिले तारिफ़ है । एक महत्वाकांक्षी अभिनेत्री से लेकर मां बनने की मिमी की जर्नी को बखूबी दिखाया गया है । फिल्म में दिखाई गई विभिन्न गतिशीलता और रिश्तों को बखूबी हैंडल करने के लिए लक्ष्मण उतेकर प्रशंसा के हकदार हैं । वहीं फ़िल्म की कमियों की बात करें तो, सेकेंड हाफ़ में फ़िल्म थोड़ी लंबी हो जाती है । इसके अलावा फ़िल्म का अंत अचानक आता है जो कि अनुमान करने योग्य है।
मिमी की शुरूआत एक शानदार नोट पर होती है जो सरोगेसी के कॉन्सेप्ट को बड़े करीने से समझाता है । मिमी की एंट्री जल्दी होती है । मिमी सरोगेसी के लिए कैसे सहमत होती है यह देखने लायक है । वह दृश्य जहां डॉ आशा देसाई (जया भट्टाचार्य) अनाउंस करती है कि मिमी गर्भवती है, और यह वह जगह है जहां दर्शकों को एहसास होता है कि फिल्म इमोशनली टच करेगी । मिमी और भानु के मुस्लिम कपल होने का नाटक करने वाले गाने को जरूर पसंद किया जाएगा । लेकिन निर्माता फिल्म को गंभीर नहीं होने देते हैं और जल्द ही, भानु के बच्चे के पिता होने का नाटक करने वाला ट्रैक डाला जाता है और यह फ़िल्म में फ़न जोड़ता है । वह दृश्य जहां रेखा और भानु की मां कैकयी (नूतन सूर्या) एक ऐसा सीन क्रिएट करती हैं, जब वे मान लेते हैं कि भानु ने दूसरी बार शादी की है, तो हंसी आना निश्चित है। आखिरी 30 मिनट काफी गंभीर हैं और यकीनन दर्शकों की आंखें नम करने की क्षमता रखते हैं।
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अभिनय की बात करें तो कृति सेनन बेहद मनोरंजक परफॉर्मेंस देती हैं । वह एक तरह से फिल्म में अकेली लीड हैं और वह इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाती हैं । यह निश्चित रूप से उनका सबसे कुशल प्रदर्शन है और उन्हें इसके लिए हर जगह से सराहना मिलेगी । पंकज त्रिपाठी शानदार प्रदर्शन देते हैं । अन्य कोई अभिनेता इस भूमिका को इतनी अच्छी तरह से नहीं कर सकता था । उन्होंने कई यादगार प्रदर्शन दिए हैं लेकिन यह निश्चित रूप से उनके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनों में से एक है । साईं तम्हंकर अच्छा अभिनय करती हैं और सपो्र्टिव फ़्रेंड के रूप में एक अमिट छाप छोड़ती हैं । एवलिन एडवर्ड्स और एडन व्हाईटॉक प्रभावी हैं। जैकब स्मिथ (राज) बहुत प्यारे हैं और सेकेंड हाफ में फिल्म में बहुत कुछ जोड़ते हैं। मनोज पाहवा और सुप्रिया पाठक हमेशा की तरह बेहतरीन हैं । आत्मजा पांडे और नूतन सूर्या एक छोटे से रोल में बेहतरीन हैं । जया भट्टाचार्य निष्पक्ष हैं। शेख इशाक मोहम्मद (आतिफ) हास्य में जोड़ते है। नदीम खान ठीक है।
ए आर रहमान का संगीत औसत है और, इससे बेहतर हो सकता था । 'परम सुदनारी' अच्छे से कॉरियोग्राफ़ किया गया है । 'आने को है मेहमान', 'फुलजादी' और 'रिहाई दे' ठीक है जबकि 'छोटी सी चिरैया' दिल को छूता है । ए आर रहमान का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म में दर्शाए गए इमोशन को बढ़ा देता है । आकाश अग्रवाल की छायांकन प्रथम श्रेणी का है और राजस्थान के लोकेशंस को अच्छी तरह से कैप्चर किया गया है । शीतल शर्मा की वेशभूषा स्टाइलिश होने के साथ-साथ जमीनी है । सुब्रत चक्रवर्ती और अमित रे का प्रोडक्शन डिजाइन आकर्षक है लेकिन वास्तविक भी लगता है । मनीष प्रधान का संपादन ठीक है।
कुल मिलाकर, मिमी एक दिल को छू लेने वाली पारिवारिक फ़िल्म है जो शुरू से लेकर आखिर तक मनोरंजित करती है । यदि यह फ़िल्म सिनेमाघरों में रिलीज होती, तो इसे सफ़ल होने का अच्छा मौका मिलता । मिमी को जरूर देखिए।
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